दीये बना कर बैठ गई
दीये बना कर बैठ गई
कच्चे दीये बना कर बैठ गई
वो उम्मीद सजा कर बैठ गई !
मेरी दिवाली भी रोशन होगी
वो भी आस लगाकर बैठ गई !
कोई न आया दीये लेने पास
वो बहुत हताश और निराश !
कैसे ख़ुशियाँ आयेगी पास
वो निराश-उजागर बैठ गई !
रंग-बिरंगी सी है दुनिया
यहाँ किसी की फ़िक्र कहाँ !
अपना-अपना देखते सब
किसका दामन भरा यहाँ !
मासूम उम्र सुख पायेगी
मेरी माँ दीये बेच कर आएगी !
हमें भी नए वसन दिलाएगी
हमें खूब पकवान खिलाएगी !
साब ले लो कच्चे दीये माँ के
कई सपनों को बेच रही है ये !
दीप घर में लाओ मेरी माँ के
धूप में परिश्रम कर रही है ये !