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आकिब जावेद

Tragedy

5.0  

आकिब जावेद

Tragedy

दीये बना कर बैठ गई

दीये बना कर बैठ गई

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कच्चे दीये बना कर बैठ गई

वो उम्मीद सजा कर बैठ गई !


मेरी दिवाली भी रोशन होगी

वो भी आस लगाकर बैठ गई !


कोई न आया दीये लेने पास

वो बहुत हताश और निराश !


कैसे ख़ुशियाँ आयेगी पास

वो निराश-उजागर बैठ गई !


रंग-बिरंगी सी है दुनिया

यहाँ किसी की फ़िक्र कहाँ !


अपना-अपना देखते सब

किसका दामन भरा यहाँ !


मासूम उम्र सुख पायेगी

मेरी माँ दीये बेच कर आएगी !


हमें भी नए वसन दिलाएगी

हमें खूब पकवान खिलाएगी !


साब ले लो कच्चे दीये माँ के

कई सपनों को बेच रही है ये !


दीप घर में लाओ मेरी माँ के

धूप में परिश्रम कर रही है ये !


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