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Dr Jogender Singh(jogi)

Romance Fantasy

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Dr Jogender Singh(jogi)

Romance Fantasy

दीवाना सा ताला

दीवाना सा ताला

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काले काले बादल आसमान पर जब भी छाते

यादों के कुछ ताले बरबस ही खुल जाते।


पुराने जंग लगे मायूस उदास चेहरे लिये

 टूटे दरवाज़ों के सहारे लटके ताले।

क्या चाबी के विछोह में उदास हैं ? ताले।

दिन में कई कई बार मिलती प्रेयसी सी चाबी ,

न जाने ? अब कोने में रखे किसी ट्रंक में पड़ी रोती होगी ??


वो चमकीली सी सुंदर चाबी 

साथ रहती ताले की बाँहों में बाँहें डाले महीनों तक।

एक /दो दिन का बिछुड़ना असहनीय हो जाता।

घूम फिर कर चाबी  वापिस आती

ताले को सबसे पहले गले लगाती।


बाक़ी मशगूल हो जाते अपने अपने काम में

वो बैठ ताले को क़िस्से सुनाती।

कैसे पंछी से उड़ते हवाई जहाज़ आसमान में।

कैसे रेलगाड़ी पटरी पर धड़धड़ाती

स्पीड पकड़ तूफ़ान बन जाती।


एकटक देखता ताला जब उसको

तो चाबी चुप हो जाती।

ऐसे मत ताका करो देखो कोई देख न ले।

बदनामी हो जायेगी और शर्म भी मुझे आ जाती है।


वापिस ऐसे ही आ जाना छोड़ कर तो नहीं जाओगी ? 

बिझड़ भी जाएँ ग़र हम इक दूजे को न भूलेंगे।

 वादा करो तुम प्यारी चाबी वादा तुम निभाओगी।

देखो ऐसे न बोलो प्यार को मेरे यूँ न तोलो।

मैं वादा अपना निभाऊँगी

वापिस जब भी आऊँगी वादा करती हूँ

सबसे पहले तुझे गले लगाऊँगी।


उसी वादे के सहारे लटका है सालों से

उम्मीदों से भरा राह तकता प्रेयसी की।

पुराना जंग लगा प्रेमी ताला।

जर्जर मकान के टूटे दरवाज़े पर  

लटका मानो कोई तपस्वी ताला।


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