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Arun Pradeep

Inspirational

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Arun Pradeep

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दीवाली

दीवाली

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एक बार फिर आई है 

गाती दीवाली

जगमग दमके बंगलों में 

चेहरों से झलक रही लाली। 


सोचा है क्या कभी किसी ने 

क्या होता ग़रीब के घर में

समय से पहले वृद्ध हुई माँ

मांगे जूठन घर घर में। 


बच्चे उसके तो अगले दिन

ढूंढेंगे बिन जले पटाखे 

जहाँ कर रहे हैं आज हम

जोर शोर से धूम धड़ाके। 


मायूसी में गुम गरीब माँ

गुड्डी चुन्नू को क्या समझाये 

घर को उनके बरस दर बरस 

क्यों दीवाली छूकर न जाए !


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