दीपक
दीपक
उजड़े मन-उपवन में प्यारे ,आशा का शुचि दीपक धरना ।
सूरज जैसा ही दमको तुम ,आलोकित इस जग को करना ।।
मत रोना तुम निज नैनों से ,भास्कर जैसे जलते रहना ।
जीवन देना हर जीवन को ,अंगारे हर पथ के सहना ।।
दिनकर से ही दिन है जग में ,जानो कण-कण में लौ भरना।
सूरज जैसा ही दमको तुम ,आलोकित इस जग को करना ।।
तरुवर ,पल्लव ,सरिता ,धरती ,रवि से ही सुंदरता पाए।
पंछी का कलरव भी रवि से ,नभ- मंडल हर्षित हो छाए।
दीपक बनकर जगमग करना,अंधेरे को प्रिय तुम हरना ।
सूरज जैसा ही दमको तुम ,आलोकित इस जग को करना ।।
उजियाला हर मन में लाना ,शुचि दीपक हो हर उर-द्वारे ।
मंजिल अपनी साधो प्यारे, दुनिया तुम पर निज उर वारे।।
जीवन के अर्थों को देकर ,ही जग-माया से तुम तरना।
सूरज जैसा ही दमको तुम ,आलोकित इस जग को करना।