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Ramdev Royl

Classics

4.5  

Ramdev Royl

Classics

दीपावली कि शुभकामनाएं

दीपावली कि शुभकामनाएं

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सदियों से खोई थाती को,

निर्विकार समय है लाने का।

वे जो सो गये चिरनिंद्रा में,

समय है उन्हें पुनः जगाने का।


जिनमें भरा है भाव निस्तेज,

उनके भाव अदम्य बनाने हैं।

 जहां सदियों से है अन्धेरा,

अब वहां दीपक जलाने हैं।


रहें उपेक्षित इस गगनतल में,

उन्हें उचित न्याय दिलाने है।

जहां अभी भी है अन्धेरा,

अब वहां दीपक जलाने हैं।


 सम्पूर्ण अस्तित्व की रक्षा में,

 जो सब त्याग कर रहते समर्पित 

 उनके स्मृति में क्या परित्यागूं,

 इस दिवाली दो दीया है अर्पित।


देशवासी को भाई-बहन सा,

देशरक्षा को कर्तव्य मानने वाले।

जयकारा हो सम्पूर्ण धरा पर,

हे प्रिय! ऐसे भाव जगाने वाले।


 कलंकित करने वाले अन्धेरा को,

 अब निश्चित अन्त दिखाने होंगे।

हो या ना हो इस दीपावली पर,

सोये खोये को दीया दिखाने होंगे।


करने होंगे उलट-पुलट मीमांसा,

त्रस्त व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने मे।

तन्मयता से करते रहना कर्म,

इस धरा पर नई अलख जगाने को।


आओ चलें हम उस ओर-छोर,

जिसका नभ है पूर्ण अन्धेरे में।

 वहां भी तो अब दीपक जलाना,

जो जिया है सदियों से अन्धेरे में।


जिनके कर्ममण्डल का आभारी,

बना रहेगा अबोधाज्ञ जनमानस।

रहें नहीं हैं जिनके कुलदीपक,

दीया जला दें उन्हें भी हे मानस!!


काल के कर्मकौशल के सहभागी,

जो निकले थे मसाल जलाने को।

जय जय हो उनके कर्मभार की,

 समय आया है आज उन्हें जगाने को।


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