दीदार की खतिर
दीदार की खतिर
एक तेरे दीदार की खतिर
कितना हम बैचैन रहे,
जुड़ रही है तुमसे उम्मीदें
सोचते है तुमसे कहें ना कहें।
नीलम जैसी तेरी आँखें
कितनी तन्हा चुपचाप रहें,
सोच रहा हूँ तु ऐसे ही बैठे
नजरो से नजरे साफ कहें।
चल पड़ा तुमसे दूर ज़रा पर
ये कदम वहीं ठहरे रहें
सोचता हूँ तुम्हें जाकर रोकूँ
कैसे मन की बात कहें।