धूप सुनहरी
धूप सुनहरी
तेरे प्यार की सुनहरी धूप में
जूही की कली बन खिल सी गई मैं
जब भी तूने देखा नए अंदाज से देखा,
एक ही नजर में मेरा सारा जहान लूट लिया तूने।
की है ऐसी राह जनी सरेआम तुने ,
मैं हो गयी धनवान एक पल में।
मेरे इश्क को भी संवारा तूने
अपने प्यार से जब भी चाहा तूने पास बुलाया,
जब भी चाहा तूने मुझे भुलाया।
ये मुश्किल है दिल की ,
तो दिल ही सुलझाएगा,
मुझे तेरे प्यार की सुनहरी धूप
की गर्माहट पर है यकीं
सांझ आने से पहले तुम आओगे जरूर,
सुनहरी धूप में बैठी है ये तेरी विरहन
विरह की तपन को आके मिलन से शीतल कर दो मेरे मीत।