धन के अपने
धन के अपने
धन कमा लिया जाता है
साधन खरीदने के लिए.
धन बनता नहीं साधन
बनता है लक्ष्य कभी.
होती है पूजा धनी व्यक्ति की.
लिखा जाता है इतिहास उन्हीं के नाम का.
कहते हैं धन से लग जाते हैं पंख इंसान को उड़ने के लिए.
कहते धन लगा देता अपने आस-पास के लोगों में पूंछ.
कहा यह भी जाता है कि धन से झुकते हैं मंदिरों के पुजारी भी,
और झुकते हैं झरनों के संगीत भी.
कहते हैं यह भी कि धन बढ़ा देता है दिमाग
और बढ़ा देता है हौसला.
वो बात और है कि
धन से बने अपने - धन के ही अपने होते हैं - इंसान के नहीं.
उनके लिए इंसान होता है एक कूड़ेदान में जिसके चारों तरफ हैं धन की गठरियाँ.
