दहेज
दहेज
जब वह बन्द कली थी
अब बन विकसित कुसुम
छटा लुभाती नयनों को
हृदय प्रेम में बन अंकुर
करती प्रेम का मौन समर्थन
होठों में लिए मधुर मुस्कान
अंगों में शिथिल आलस्य
आँखों में बनकर तिरछी चितवन
वह रूपवती है चतुर प्रवीण
लिए हुए गुणों की खान
फिर भी है चिंतित आधीर
क्या है इनका कुछ भी मान
पंख होते वह उड़ जाती
मन में लिए हुए अभिलाषा
भावी पति के लिए
कहीं से धन संचय कर लाती
अच्छी बहुरानी बनकर
घर की रानी बन जाती