धैर्य
धैर्य
तम्हें धेर्य कहूँ या धीरज
संयम कहूँ या सब्र
कितने नाम से हम
जीवन में तम्हें जानते हैं।
फिर भी तुम्हारा मूल्य
क्यूँ नहीं पहचानते है
जानते हैं तम्हें खोकर
ना हम किसी को पा सकते हैं।
और ना किसी को अपना सकते हैं
फिर भी कभी तनाव तो कभी बहाव में
शब्दों पर संयम क्यूँ गवा देते हैं
किसी का दिल क्यूँ दुखा देते हैं।
कुछ लोग तुम्हें गवा कर
खुद को गंवा देते हैं
और कुछ एहसास होने पर
उस एक पल के प्रश्चित में
ताऊम्र गंवा देते हैं।
फिर भी तुम्हें धारण करना
इतना कठिन क्यूँ है
ये मन तुमको अर्पण करना
इतना कठिन क्यूँ है
इतना कठिन क्यूँ है।