देशप्रेम और देशद्रोह
देशप्रेम और देशद्रोह
देशप्रेम और देशद्रोह ये कहने की कोई बात नहीं
ये किस दिल में कब आ जाए यह भी किसी को ज्ञात नहीं
परिवर्तन के नव उमंग में मुख से कोई क्या कह दे
राजनीति के नज़रों से इसे देखना कोई बात नहीं।
देशद्रोह और देशप्रेम पर राजनीति जो करता है
ऐसा नेता कभी देश का भला नहीं कर सकता है
अपने स्वारथ के खातिर कुछ ऐसे चर्चे यदि होंगे ,
भला बताओ सच्चाई को कौन बयाँ कर सकता है ?
देशद्रोह की परिभाषा यदि नारों से तय होती है
फिर देशप्रेम के नारों पर क्यों राजनीति नहिं होती है ?
सरहद पर सैनिक मरते हैं फिर नेता चुप क्यों रहते हैं ?
दो शब्द शोक के कहने से क्या देशप्रेम हो जाता है ?
उस माँ से पूछो जिसके आँखों का तारा छिनता है
उस माँ के आँखों में क्या देशप्रेम नहीं दिखता है ?
राजनीति से दूर रखो इस देशद्रोह के नारों को,
औरों को देशद्रोह कहने से देशप्रेम नहीं बढ़ता है।
कानून और धाराओं से यदि देशद्रोह को हम मापें
तो देशप्रेम को भी कोई कानून व धारा में जांचे
क्या देशविरोधी नारेबाजों से ये कभी किसी ने पूछा है ?
क्या उन्हें अदालत और जेल में बन्द करना ही देशप्रेम है ?
जब लोकतंत्र के मंदिर में कुर्सी,मिर्ची ,जूते चलते
तो भला बताओ इसमें कौन सा देशप्रेम झलकता है ?
यही नहीं बातों बातों में गोली और पिस्तौल निकलती,
यह कैसा है देशप्रेम जो संसद में दिखता है ?
अमर्यादित लोकतंत्र यदि देशप्रेम कहलाता है
फिर अपने मन की अभिव्यक्ति क्यों देशद्रोह बन जाता है ?
आज जरुरत आन पड़ी है इसे समझने समझाने की,
ऐसी नौबत इतने वर्षों बाद भला क्यों आई है ?
