देख रहा हूं
देख रहा हूं
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देख रहा हूं, उन चेहरों को आज
बाहर से हंसते है, भीतर से रोते है
देख रहा हूं, उन पत्थरों को आज
बाहर से सख़्त अंदर से नरम होते है
अपना कत्ल अक्सर वो ही करते है,
जिनके ऊपर अपने कंधे टिके होते है
देख रहा हूं, उन आईनों को आज
वो उन पे टिके है, जिनसे अक्स रोते है
हर बार जीतना ही ज़रूरी नहीं है
कभी हारने वाले भी बाज़ीगर होते है
देख रहा हूं, उस हार को में आज
जिस हार से, रण में विजय होते है