देख लेना एक दिन मैं उगूंगा जरूर
देख लेना एक दिन मैं उगूंगा जरूर
देख लेना एक दिन
मैं उगूंगा जरूर।
देख लेना तुम्हारे मस्तिष्क के मरुस्थल में,
आशंकाओ से बहुत दूर
तुम्हारे मस्तिष्क में उफनती हुयी
ज्वालामुखी की परिधि से बाहर,
तुम्हारे दिमाग मे आयी बाढ़ में
डूब चुकी अपनी ही धरती की
भावभूमि में एकदिन मैं उगूंगा जरूर।
शब्दबीज हूँ मैं
प्रकृति का अनुपम उपहार
असंतुलन में सन्तुलन के लिये
निराशा में आशा के लिये
नफरत में प्रेम के लिये
बेचैनी में संतुष्टि के लिये
बोया है मुझे प्रकृति ने तुम्हारे लिये,
और तुमने मुझे बना डाला है
आग का एक जलता हुआ गोला
अविश्वास की एक मुश्किल सी किताब
गैरजरूरी, वाहियात
एक अदद अवसरपरस्त इंसान।
देख लेना एक दिन
में उगूंगा जरूर
तुम्हारे उगाये गये जंगल के
मध्य प्रतिकार विरोधी हंसी की तरह।
राग हूँ मैं बेचैनी में ताजगी का
विरक्ति में आसक्ति का
अंधेरे में प्रकाश का।
देख लेना एक दिन
मैं उगूंगा जरूर।
देख लेना एक दिन
खामोशी में आवाज की तरह
लंगड़े की दौड की तरह
कुव्यवस्था में व्यवस्था की तरह
नाइंसाफी में इंसाफ की तरह
पतझड़ में बहार की तरह
देख लेना एक दिन
तुम्हारी जरूरत की तरह मैं उगूंगा जरूर।
