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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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डूबने से पहले आओ

डूबने से पहले आओ

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प्यार की संभावित सम्भावना में

डूबने से पहले आओ

आओ अपनी अधूरी मुलाकातों के

सिलसिले बढ़ाये।

चलो माना तुमने


जयचन्दों का आत्मानन्द देखा

प्रेम को धोखा पढ़ा

इसके पीछे तुम हो

या कोई नजर है

कोई बंधन है या

तुम्हारा आत्मसमर्पण है।


माना ये तुम्हारा ब्यक्तिगत मामला है

सम्भव है कोई जादू हो

जिज्ञासा बढ़ी है

दिल से मिली है

दिल ने दिल से कहा है

फिर मिलने की उम्मीद है


बातें होंगी

मुलाकातों के सिलसिले बढ़ेंगे

प्यार हो तो आना

अच्छा न लगे तो

तो वही अपनी पुरानी बातें

बार बार दुहराना।


प्यार की संभावित सम्भावना में

खोये खोये हम

ये तो भूल ही गये

उससे मुलाकातों की बातें

ढेर सारी बातें


जनचर्चाओं के विषय

एक पल में

टूटता हुआ सन्नाटा

निखरती हुयी धूप

भागने की बातें

दिन जैसी रातें

आंसुओं की ठंडक से

उचटी हुयी नीद


मंदिर में घण्टियों की आवाज

मस्जिद में अजान

पायल की रुनझुन

चमकती हुयी बिंदी

खनकती हुयी हंसी

कश्मीर से कन्याकुमारी तक

सदियों से गूंजती हुयी

मानवीय प्रेम की आवाजें।


प्यार की संभावित सम्भवना में

डूबने से पहले आओ

आओ वन्दना करें

हे मनुष्य तुमको है वन्दन।


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