STORYMIRROR

Shivam Antapuriya

Drama

3  

Shivam Antapuriya

Drama

डुबाया किसने

डुबाया किसने

1 min
333

विचरण है ये विहंगम है

रात दिनों भर बहती रहती

यही है प्रेम का संगम है

कल-कल छल-छल

करती बहती रहती कभी

न रुकना ही जीवन है।


पावन जल अर्पण करना

ही दुनियाँ को ये मनोरम है

जो रिश्ता है रात से इसका

वही रिश्ता दिन से हरपल है।


नदी को है डुबाया किसने

पानी को है भिगाया किसने

दुनिया की हर बुराई को लेकर

पानी रहता सदा ही निर्मल है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama