लाचार किसान
लाचार किसान
लाचार है धरा तुझसे सुनले अब पानी
किसानों को पड़ेगी कितनी और कीमत चुकानी
बेमौसमी छाया तेरी समझ मेरे नहीं आई
बीत कई दिन गए अभी नज़र धूप नहीं आई
है धरा भूगोल में, इतिहास में जन्में हैं ग्यानी
एक ही गर्ज़न करुँगा,छीन लूँगा तेरी जवानी
तू भूल है गया क्या इतिहास भारत का !
तू भूल है गया क्या नाम आर्यावर्त भारत का !
भूल हो गए क्या अगस्त जैसे ऋषियों की पावन भूमि है ये
पी गए सारा समुद्र वही समुद्र की खारी बूँद हैं ये
तुम याद करो उस युग की एक और कहानी
जब एक बाँण में सुखा दिया था सारे समुद्र का पानी
इस मिट्टी में जन्में वीर कभी न डरने वाले हैं
महज़ उम्र में घुस गया व्यूह में,वीर अभिमन्यु से प्राणी हैं
फ़सलें किसानों की खड़ी
बर्बाद करना चाहते हो
या फ़िर किसी अगस्त जैसे
ऋषि की प्यास बनना चाहते हो