डरा हुआ रहता हूं मैं...!
डरा हुआ रहता हूं मैं...!
क्यों होता है अक्सर ..?
जब दिल बेवजह
डरा हुआ रहता है,
ना खुल कर सोता है
ना जागा सा रहता है
बस खोया खोया रहता है,
दुःख भी बस घेरे रहते हैं
अपने से दिखते हैं
अपने पराए का भेद
फिर क्यों नहीं करते हैं,
सोचता रहता हूं मैं
धीमे धीमे बस खाली होता हूं मैं
डूबता हूं उबरता हूं
तिनके तिनके
रोज मरता हूं मैं,
जिंदगी बस जी रहा हूं
अपनों के आंसू
घुट घुट पी रहा हूं,
सूख रहा है सब अंदर बाहर
धीरे धीरे
हल्के हल्के......!
कुछ हुआ
कुछ नहीं भी हुआ
पर दर्द क्यों
जो रिसता रहता है
आइश्ता आइश्ता मेरे नसों में...!!
मैं डूबता हूं उथले समुंदर में
अनचाही लहरों में
भीगता हूं मैं,
पता सब है मुझे
मेरी हकीकत..
फिर क्यों अनसुना करता हूं मैं
बस डरा हुआ रहता हूं मैं...!
