डिअर जिंदगी
डिअर जिंदगी
जिंदगी को कभी नजदीक से देखा नहीं हूं
अकेले बैठ के जब भी सोचता हूँ
हंस के रोता हूँ, रो कर हंसता हूँ
जिंदगी शायद ऐसे ही दिखता है।
सागर के तरफ नदी बह जाता है
कितने टेढ़े मेढ़े रास्ते से गुजरता है
पहाड़ से टकराता है, पत्थर को काटता है
जिंदगी शायद ऐसे ही दिखता है।
कर्म का विकल्प कुछ भी नहीं
फिर भी नसीब को लोग भूलते नहीं
मनुष्य का मन, सपनों में खोया रहता हैं
जिंदगी शायद ऐसे ही दिखता है।
चाहे हज़ारों अच्छे गुण हो
कांटों का पेड़ कभी आदर पाता नहीं है
फल फलता है, फूल महकता है
जिंदगी शायद ऐसे ही दिखता है।
एक बार सांप दंश देता है तो
चाहे जितना भी घी, चंदन लगाओ
विष का कोप सिर्फ विष ही घटाता है।
जिंदगी शायद ऐसे ही दिखता है।