जिंदगी शायद ऐसी ही दिखती है
जिंदगी शायद ऐसी ही दिखती है
जिंदगी को कभी नजदीक से देखा नहीं हूं
अकेले बैठके जब भी सोचता हूँ
हस के रोता हूँ, रो कर हंसता हूँ
जिंदगी शायद ऐसे ही दिखता है।
सागर के तरफ नदी बह जाता है
कितने टेढ़े मेढ़े रास्ते से गुजरता है
पहाड़ से टकराता है, पत्थर को काटता है
जिंदगी शायद ऐसे ही दिखता है।
संसार में कुछ भी चिरस्थायी नही है
कितना आंधी तूफान रास्ते मे आते हैं
मिट्टी का शरीर मिट्टी में मिलता है
जिंदगी शायद ऐसे ही दिखता है।
कर्म का विकल्प कुछ भी नहीं है
पर किस्मत को सब भरोशा करते हैं
मनुष्य का मन, सपनों में खोया रहता है
जिंदगी शायद ऐसे ही दिखता है।
लालच से बचकर जो रह सकता है
बुद्धिमान सिर्फ वही कहलाता है
शिकारी के जाल मे शेर भी फँसता है
जिंदगी शायद ऐसे ही दिखती है।