ढूँढता हूँ मैं उसे
ढूँढता हूँ मैं उसे
यादों की गलियों में
पीछे जाते हुए
पहुँच जाता हूँ उस गेट पर
जिसके उस पार हाथ हिलाते
माँ ने मेरा हाथ
थमा दिया था किसी हाथ में।
देख उस अजनबी चहरे
माँ की डबडबाई आँखें
वो बिछड़ने और अकेलेपन का एहसास
धुंधला रास्ता ,कमरे और चहरे
वो डर ।
एक कोमल स्पर्श
एक मीठी आवाज़
जब उसने कहा था
रोओ मत मैं हूँ ना।
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झपकाकर डबडबाती आँखें
साफ होती वह सूरत
मुस्कराती आँखों में
मेरा डर खो गया।
आज बरसों बाद
नहीं याद आ रहा वह चेहरा
वह नाम वो आँखें
लेकिन जब भी उदास
अकेला होता हूँ मैं
होते है सभी अपने आस पास
हर संबल हर सांत्वना में
वह स्पर्श ढूंढता हूँ।
सुनना चाहता हूँ
वही मीठी आवाज़
रोओं मत मैं हूँ ना !