दबी हुई हसरतें।
दबी हुई हसरतें।
दबी हुई हसरतें बीज जैसी होती,
पालने वास्ते मन की माटी होती।
अक्सर आँसुओं के रेलों से भिगो,
जुनून की तपिश में सींचना पड़ता।
ज़रूरत पड़े स्थिर विचारों की यार,
विचारों के मौसम की ज़रूरत पड़े।
हसरतों को हक़ीक़त में बदल सकें,
कभी कभार बीजों को विपत्तियों के।
तले दबकर हार माननी पड़ती सदा,
कभी फलने फूलने के बावजूद हलक़
में भी हसरतों को दबाए रखना पड़ता,
इन हसरतों का वजूद रखना है पड़ता।
कभी समाज की बेड़ियाँ कारण बनती,
कभी अपनी इच्छाएं भी कारण बनती।
कभी नाज़ुक मन की परेशानी वजह है,
सच इन दबी हसरतों का ठिकाना नहीं।