दौर
दौर
कैसा चल रहा देखिए दौर है
यहाँ नफ़रतों का टूटा छोर है
गिले शिकवे करने ज़रा छोड़ दे
यहाँ देखिए भी मकाँ और है
हुआ है ऐसा देखिए क्या यहाँ
गली में बहुत हो रहा शोर है
पराये सभी हो गये है अपने
यहाँ तो रिश्तों की टूटी डोर है
लूटे घर यहाँ मुफ़लिसों के बहुत
गली में आये रात कुछ चोर है
ग़मों के अंधेरे घेरे आज़म को
ख़ुशी की न आयी कोई भोर है।
