दामन धरती का
दामन धरती का
कैसी गुफ्तगू थी यह
धरती और आसमान की
कहानी बयां करती थी
अपनेे ही जहां की
जिस इंंसान को जन्म दिया
बच्चे की तरह दुलराया
आज जवान हो कर
उसने येे मास्क मुझे पहनाया
पर देखो आज यही मास्क
उसकी भी मजबूरी है
जिंंदा रहने के लिए
घर मेेंं रहना ही जरूरी है
जो अब भी संंभल गया
फिर माँ बनकर अपनाऊँगी
जारी रही अवमानना तो
प्रलय बन लील जाऊँगी
नवसृजन हित विध्वंस का
यह दस्तूूूर पुराना है
नयी भोर हित गाना
अब इक नया तराना है
धरती माँ हैै अपनी
माफी उससे माँग लो
नव विकास पथ पर बढ़ने को
दामन उसका थाम लो....।।।