दाल और चावल
दाल और चावल
बचपन से ही थे पसंद ,
माँ के हाथों से बने दाल और चावल।
उनकी खुशबू और स्वाद ,
सबसे था अलग।
शादी के बाद भी घर जाने से पहले,
माँ को बोला करती थी।
माँ कल घर आऊंगी ।
कुछ ओर नहीं बस ,
दाल और चावल खाऊंगी ।
माँ भी बड़े प्यार से बेटी की,
फरमाईश पूरी करती थी।
अपनी लाडली बेटी की खातिर,
बडे प्यार से दाल और चावल बनाया करती थी।
पर कुदरत को माँ बेटी का,
प्यार रास ना आया।
और मेरी माँ को ,
रब ने अपने पास बुलाया।
बस अब तो माँ के बने खाने की,
खुशबू से दिल को बहलाती हूँ।
और माँ की यादों में खोकर,
चुपके चुपके रोया करती हूँ।