दादी संग गपशप
दादी संग गपशप
याद है बचपन में दादी कविता गाया करती थी
हमको खुश रखने के खातिर गुनगुनाया करती थी
कविता में पारियों की बातें हमको बताया करती थी
कहानियों में राजा रानी से मिलाया करती थी।
दादी बाबा संग गुजरे पल अनोखे लगते थे
दादी के हाथों के मेवे बेहद चोखे लगते थे
सर में हाथ फेरकर हमको वो सुलाती थी
उनकी कविता बिन सब हमको धोखे लगते थे।
कविता को गा बजाकर हमको थपथपाती थी
दादी की कहानियां चेहरे पे मुस्कान लाती थी
गुम हो रही बातें सभी पल सभी अब धुंधले हैं
दादी उस दौर में शायद हमको बेहद चाहती थी।