चुपचाप रहो कुछ मत बोलो।
चुपचाप रहो कुछ मत बोलो।


चुपचाप रहो कुछ मत बोलो। छोड़ दुखों को खुशी सँजो लो।
कुछ भी कहने से पहले तुम, वज्न सभी शब्दों का तोलो।
मत देखो गैरों की कमियाँ, अपने अन्तर्मन को खोलो।
त्यागो सारी कड़वी वाणी, मधु मिश्री बातों में घोलो।
काँटे ही काँटे बिखरे हैं, अब तो बीज खुशी के बो लो।
ग़म का बोझ अगर कम करना, बैठ अकेले कुछ पल रो लो।
माला जप लो राम नाम की, पुष्प किये पापों को धो लो।