चोट
चोट
क्यों ढूंढते हो जख्मों के निशां जिस्म पर,
हमने तो चोट दिल पर खाई है।
लबों की मुस्कान पर ना जाना,
दिल में दर्द की एक गहरी खाई है।
जब सूर्य छिप जाते हैं अम्बर में,
गहरी रात निकल कर आई है।
मत ढूँढिये निशां बदन पर,
हमने चोट दिल पर खाई है।
✍️गीता कुमारी
