STORYMIRROR

Geeta kumari

Abstract

3  

Geeta kumari

Abstract

वो बुरा मान गए

वो बुरा मान गए

1 min
165

हमने सच बोला, वो बुरा मान गए

ज़रा मुंह खोला, वो बुरा मान गए।


सदियों से सुनती ही तो आई है नारी,

आज ज़रा सुनाया, तो बुरा मान गए।


औरों की चाहत को हमेशा चाहा,

आज अपनी चाहत ज़ाहिर की,

वो बुरा मान गए।


ऐसा नहीं है कि हम समझते नहीं थे.. 

उन्हें लगा, हम समझने लगे,

तो बुरा मान गए। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract