चोट खाएं हुए हैं
चोट खाएं हुए हैं




बयां करूं क्या दिले हाल अपना,
बस चोट खाये हुए हैं।
अपनो की भरी महफिल मे,
गले तन्हाई लगाये हुए हैं।
बयां करूं क्या दिल.....
फिकर मत करो यारों,
ये तो खुदा कि मंजर है।
जुबां पे सरगम हाथो में खंजर है।
तारीफ करुं मैं किसकी,
किसकी शिकायत करूं।
बारी-बारी से सबसे
अजमाए हुये हैं।
बयां करूं क्या दिल.....
तोड़ा किसी ने दिल अपना,
किसी ने मरहम लगाया।
सबने खेलने का यहां,
भरकस कोशिश है दिखाया।
खिलौना बना हूँ,
मैं यहां अपनो के मेले में।
जी भर के खेला सबने,
कोई मेले में कोई अकेले में।
गिला नही किसी से,
रंग हसीं का लगाये हुए है।
बयां करूं क्या दिल.....
रूपये-पैसों की बनी ये दुनियां,
जज्बातों का यहां कोई मोल नही।
ए खुदा, गजब तेरी दुनियां
इसका कोई जोड़ नहीं।
बन्दे मांगते है तुम्हीं से,
तुम्हीं को चढ़ाते हैं।
लगी है होड़ रिश्वत कि ,
यहां हरेक दफ्तर में।
न जाने मुझे हुआ है क्या ,
बेगानो को अपना बनाए हुए हैं।
बयां करूं क्या दिल.....