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Gautam Govind

Tragedy Inspirational

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Gautam Govind

Tragedy Inspirational

मौत के आगोश में...

मौत के आगोश में...

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सबसे छुपा कर,

होकर सबसे तन्हा।

दबा रखा था,

दिल के इक कोने में-

वह कुछ सपना।

कितनी ख़्वाहिश होगी,

दिल में उसके।

जाने कितने रंगों से,

सजाये होंगे वो सपने।


भला कौन है?

जो टाल सका अनहोनी को।

जो उससे टल जाती?

टूट पड़ा पहाड़ जैसे,

दुःखो का एक साथ।

टूट गये उसके 

सारे सपने।

कितनी ख़ुशियाँ थी - 

जीवन में उसके,

बिखर गये सब।


बचा रखा था जो कुछ,

वह लुट गये सब।

कितनी तकलीफ़ 

हुई होगी उसे।

जब आया होगा,

हवा को चीर के कानों में 

उसके वह शब्द।

जो नहीं सोचा था,

कभी उसने।


खिसक गया होगा,

जमीं पैरों तल्ले से।

लगी तो होगी जरूर,

उसे जोड़ों कि प्यास।

झट से बैठ गया होगा,

सर पे हाथ रख कर वह।

सोचता तो होगा,

काश मिलता मुझे भी-

किसी का साथ।

बहुत दिया धोखा,

जमाने ने उसको।

वक्त भी रूठा हुआ उससे,

पड़ा था एक कोने में।

लहु-लुहान थी,

उसकी आत्मा।

पर अटूट था-

विशवास उसका,

जो जीवित था अब तक।

और साथ था ही कौन?


अरे कहाँ !

मानने वाला था वह।

गिरता फिर उठता,

था लड़खड़ाता-

पर चला जा रहा था।

सजा रखा था,


वर्षों से जो तमन्ना-

वो थकने कहां देती थी उसे।

लेकिन कब तक?

आखिर थक गया,

वह चलते-चलते।

सह नहीं सका और बोझ,

वह जिम्मेदारी का।

धराशायी हो गया,

वह धरा पड़।

नहीं आएगा अब वह,

वापस यहाँ तड़पने।

चला गया दूर बहुत दूर,

मौत के आगोश में।

          

        


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