कैसे भूला दूं...
कैसे भूला दूं...
विलोचन कि दिप्ती में, अनुपम सी प्रीति।
अधरों पे उनके हैं, कुसुमासव की कृति।
माथे की बिंदिया, और हाथों की कंगन।
अपरुष कौशेय हैं अलक जिनकी,
बताओ तुम्हीं मैं कैसे भूला दूं...।
कुंजल की बोली, शावक सी भोली।
मधुकर का गुंजन, पाजेब की छम - छम।
मनहर हैं बातें, अनुपम हैं यादें।
है संगमरमरी, बाहें जिनकी।
बताओ तुम्हीं मैं कैसे भूला दूं..
चंचल सा मन है, और कोमल तन है।
फूलों सा चेहरा, जैसे फलक में सितारा।
कान्ति की कांति, जैसे नूतन तरुणाई।
मधुमास की बेला, लाये जिनकी अंगड़ाई।
बताओ तुम्हीं मैं कैसे भूला दूं...।
धाता कि अप्रतिम रचना, जो नियति से मिला हो।
तन - मन में जिसके, गंधराज घुला हो।
उड़ेला है जो करुणा, मेरे हृदय में।
रश्क हो रही क्यों, सारे जहां को
बताओ तुम्हीं मैं कैसे भूला दूं...।
सुखनिता भी घायल, जब नज़रें उठाये।
तिमिर छा जाये, जब वो लटें बिखराये।
गर अनुज्ञां हो उनकी, जरा इसे मैं सवारूं।
प्रणय के सूत में बांधे, मेरी बस यही अभिलाषा।
बताओ तुम्हीं मैं कैसे भूला दूं...।