चक्षु
चक्षु
चक्षु खोलूं तो
तुम ओझल हो जाते
चक्षु बंद करूं तो
तुम प्रगट हो जाते
ऐ कैसा स्वपनिल दृश्य
हृदय से विपरीत ,
रक्त से शिथिल
अहसास से बढ़कर
क्षणभर श्वास में मिले ।
चक्षु खोलूं तो
तुम ओझल हो जाते
चक्षु बंद करूं तो
तुम प्रगट हो जाते
ऐ कैसा स्वपनिल दृश्य
हृदय से विपरीत ,
रक्त से शिथिल
अहसास से बढ़कर
क्षणभर श्वास में मिले ।