छोटी सी टहनी
छोटी सी टहनी
ठौर नहीं है किसी की भी
तो पूरा कुनबा पलता है
डाली डाली पतों पर ये
मिल जुल कर रहता है।
छोटी सी टहनी के सिरे
पर फिर दाने संजोते हैं
बिना किसी टकराव के
क्यों आपस में रहते हैं।
ढलते सूरज की रोशनी
में कई झुंडों में आते हैं
आसमां को गुंजायमान
करते वापस बस जाते हैं।