STORYMIRROR

छलनी सीना

छलनी सीना

1 min
325


हर रोज होता है यहाँ छलनी सीना

हर उस माँ का

जिसने जना है सुपूत

वीर भारत भू का।


छेदती है तोपे गोलियाँ

कर बदन के पुर्जे पुर्जे

दर्द से कहार कर

आह भी ना निकलती हलक से।


डबडबाई आँखो मे सूख जाते हैं आँसू

दर्द भी बेजुबान होता है

जब सीमाएँ लाँघ जाती है

जख्म बदन पर लगे हुये।


शर्मशार हो जरा,

वीरों के बलिदानों पर

दोगले लोग, दो मुँहे

जो सफेद पोश बनकर घूमते हैं

नेतागीरी की मंडी में।


क्या होता नहीं है दिल,

उन हुक्मनारों के सीने में।

जो देते हैं हुक्म

इन्सान को इन्सान के कत्ल का।


हर रोज होता है यहाँ छलनी सीना

हर उस माँ का।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract