छाता और मोहब्बत
छाता और मोहब्बत
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एक छाते में हम और तुम चलतें रहे।
कुछ कहते रहे, कुछ सुनते हे।
कुछ गुनगुनाते रहे, थोड़े हँसते रहे।
मगर ये पता चला,
जब आधे भीगे हुए थे तनबदन ,
मोहब्बत में हमतुम मदहोश हो गये थे।
चलते चलते कितनी दूर आ गये हम
डर किस बात का , जब साथ है हम।
ना भूख लगी, ना प्यास लगी।
मोहब्बत की जब आस जगी।
ना समय का होश रहा।
पवन भी ख़ामोश रहा।
ऊपरवाला भी बरसे
हो रही गरम साँसे।
ना लोगो की परवाह रही ।
नज़रे एकदूसरे में खो गई।
छाते ने भूमिका निभानी चाही।
मिलने के बहाने ने कहानी बनायी।
किसी मोड़ वो भी हवा हो गया।
किसी और दिल ढूढ़ने चला गया।