चारों धाम की यात्रा बस वह सेवा
चारों धाम की यात्रा बस वह सेवा
जज्बा-जुनून हो तन-मन में तो
वह आशा किसी से न करती है
जो हाथ है, जो साथ है हमारी
उसी से नेकी करती है।।
टाल मटोल की न जरूरत
तनिक भी उसको पड़ती है
हृदय की गहराई से वह भक्त
भगवान की भक्ति करती हैं
जज्बा-जुनून हो तन मन......
जिससे उसको मुक्ति धाम की
प्रखर रास्ता मिल जाती है
और ना चाहें तो भी उसको
भगवान शरण में रख लेती है
जज्बा-जुनून हो तन मन......
चारों धाम की यात्रा बस वह
सेवा से ही पूर्ण कर लेती है
मंगलमय जीवन फल दायक
हर्ष उल्लास से कट जाती है
जज्बा-जुनून हो तन मन......
आज-कल की सारी चिंता
वह ईश्वर पर छोड़ देती है
डेली-डंडा लिए मनुष्य वह
जब सेवा में जुड़ जाती हैं
जज्बा-जुनून हो तन मन......
सारी दुख हर लेती उसकी
सुख से जीवन कटती हैं
जब माया संसार को छोड़कर
कोई सेवा कार्य में लग जाती है
जज्बा-जुनून हो तन मन......
