चार जून की बात है।==========
चार जून की बात है।==========
1 min
293
चार जून की बात है
उसमें भी कुछ घात है
कौन बनेगा समय का साहु
या बन छाएगा कोई राहू
अजीब झंझावात है
चार जून की बात है।।
हर जी पलता प्रतिघात है
सृष्टि पर यह कैसा आघात है
मिलनी चाहिए हर कथ्य तथ्य
नहीं तो गैर तुम चाहे काहु
बिन वार गजब वारदात है
चार जून की बात है।।
कराह कहाँ सुनना निर्वात है
मानव चीख बनी दावात है
न कोई मोल अब बहे तो लाहू
बिखर रहा तम फैला त्रिबाहू
न हो बखान वह करामात है
चार जून की बात है।।