चांदनी
चांदनी


जैसे रात काली चादर ओढ़ आई,
चांदनी झांकती नज़र आई,
मेरे ख्याल व्याकुल हुए,
शब्द अपने आप सुर पकड़ने लगे,
बाग में फूलों ने महक बिखेरी,
मानो पुरानी यादों की झांकी थी,
हर याद की एक झलक,
हर फरियाद की झलक,
चांदनी हर दिल में आहिस्ता उतरी,
किसी ने कविता कह दिया उसे
किसी ने प्रियसी,
मैंने भी पीछा किया,
चांदनी को छूना जो चाहा,
अंधेरा मुठ्ठी में मिला,
रात से एक लड़ाई थी,
आज चांदनी जाने के इरादे में न थी,
जमीं को छूती चांदनी राह को जीवित कर गई,
व्याकुल अंधेरे को मानो कोई पुकार दे गई,
मेरी दराज में चांदनी कुछ रख गई,
अपना पता अज्ञात लिख बाकी खत खाली छोड़ गई।।