चांदनी की चहक
चांदनी की चहक
उम्मीद न था तभी कभी उसे पाने की
पर जब मिला तभी उम्मीद न थी उसे गवाने की
ये क्या बात है आज की चांदनी में
के हम खो गए प्यार कि रागनी में
चुप न जाना तू कहीं दिल तोड़ के
निगाहें चुरा बादलों के चद्दर ओढ़ के
याद है मुझे आज भी वो रात
जब थे तन्हां छत पे हम दोनों साथ
ताखते ताखरे तुझे नज़रे भरती नहीं थी
चांदनी तेरी लिपटी बदन से नज़रें फिसलती नहीं थी
आज हो तुम जो दिल में समये जाते हो
चांद छुपा बदल में
मेरा चांद मुझे आया है नज़र
ऐ रात ज़रा थम थम के गुज़र।