एक अनसुलझी कहानी
एक अनसुलझी कहानी
कहती हैं हवाएं पर्वतों से की
खुशियों से मुंह क्या फेरना,
जब खुशी हो मुंह न दिखाए !
दुख से मुंह क्या चुराना।
जब दुख ही साथ बन जाए,
झूठी दुनिया में सच की है पुकार।
नफ़रत खुशियों से खामोशी से है प्यार,
जवाब में कहते हैं पर्वत माला की -
अधूरा लगता ये समा,
पर बोले किससे ऐ रामा।
अकेलेपन की है तलाश,
जिंदगी लगती है एक जिंदा लाश !
पर आखिरकार हैं तो हवाएं पर्वतों के साथ,
फिर क्यों है जिंदगी ग्रीष्म की रात ?