STORYMIRROR

Meera Ramnivas

Abstract

4  

Meera Ramnivas

Abstract

चांद

चांद

1 min
405

चांद से मेरा पुराना नाता है

चांद का रूप मुझे भाता है

उसके आने की प्रतीक्षा रहती है

उससे मिलने की इच्छा रहती है

चांद मुझे देख मुस्कुराता है

मुझे अपने किस्से सुनाता है

मैं मंत्रमुग्ध होकर निहारती हूं

मैं सुंदर यात्रा वृतांत सुनती हूं 

किसी भी गांव, शहर में गुजरे मेरी रात

चांद चांदनी निभाते हैं सदा मेरा साथ

चांद के आते ही चांदनी

खिड़की से चली आती है

मेरा हाथ थाम कर

मुझे छत पर ले आती है

पूनम को चांद पूर्ण कलाओं संग खिलता है

मनमोहक चांद को मिलने मन मचलता है

मेरा मन चांद संग हो लेता है

छत मुंडेरों पर चढ़ता उतरता है

वन उपवन घूमता फिरता है

मन मेरा गंगा में नहा आता है

क्षण में कैलाश पर चढ़ जाता है

क्षण में द्वारिकापुरी हो आता है

तन जहां जहां न जा पाता है

मन वहां वहां हो आता है।।

    


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract