चांद
चांद
चांद से मेरा पुराना नाता है
चांद का रूप मुझे भाता है
उसके आने की प्रतीक्षा रहती है
उससे मिलने की इच्छा रहती है
चांद मुझे देख मुस्कुराता है
मुझे अपने किस्से सुनाता है
मैं मंत्रमुग्ध होकर निहारती हूं
मैं सुंदर यात्रा वृतांत सुनती हूं
किसी भी गांव, शहर में गुजरे मेरी रात
चांद चांदनी निभाते हैं सदा मेरा साथ
चांद के आते ही चांदनी
खिड़की से चली आती है
मेरा हाथ थाम कर
मुझे छत पर ले आती है
पूनम को चांद पूर्ण कलाओं संग खिलता है
मनमोहक चांद को मिलने मन मचलता है
मेरा मन चांद संग हो लेता है
छत मुंडेरों पर चढ़ता उतरता है
वन उपवन घूमता फिरता है
मन मेरा गंगा में नहा आता है
क्षण में कैलाश पर चढ़ जाता है
क्षण में द्वारिकापुरी हो आता है
तन जहां जहां न जा पाता है
मन वहां वहां हो आता है।।