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Shwetank Kumar

Romance

3.3  

Shwetank Kumar

Romance

चाहूँ भी तो कैसे

चाहूँ भी तो कैसे

1 min
430


चाहूं भी तो कैसे , यकीन हो जाये तुम्हें

कश्मकश है जिदगीं की , कुछ ख्वाहिशें हैं तुमसे

यूं तो एक पल भी नही गुजरता बिन तेरे , तेरी यादे हैं अमानत मेरी ।


चाहूं भी तो कैसे , भरोसा आ जाये मुझ पे

ये दिन -रात , वक्त के साज बेमजा है बिना तुम्हारे

चारो तरफ फैली तेरी महक ,तुम हो मेरे आसपास जैसे।


चाहूं भी तो कैसे , ऐतबार आ जाये तुम्हें

बंदिशें हैं जमाने की , ये रस्म और रिवाज की शर्तें

ये फासले और दूरियां , दुनियादारी की बातें

चाहूँ भी तो कैसे , हो जाये यकीन तुम्हें ।


समय की सतह पे तेरी यादो के बुलबुले

वो प्यारभरी निशानियां , वो तुम्हारी बाते

सबकुछ भूलकर भी याद आ जाती हैं तेरी

सुबह मे शबनम से बिखरी यादें

चाहूँ भी तो कैसे , यकीन आ जाये तुम्हें ।


ये आलम , ये मौसम , सारी कायनात में बिखरे पड़ी हमारी कहानी ।

कुछ अधूरी है और कुछ पूरी , इस कदर ये इश्क कामिल हैं

चाहूं भी तो कैसे , ऐतबार हो जाय मुझ पे

इंतेहा हो गई इम्तिहान की , यूं न मुझे आजमाओ ।


आइने मे सिर्फ तेरा ही अक्स नजर आता हैं

ये निगाहें तुम्हें ही देखना चाहती हैं , बंद आंखों के ख्वाब हो तुम

आसमां से जमीं तक हैं तेरे रंग ।

चाहूं भी तो कैसे , यकीन आ जाये तुम्हें।



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