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Megha Rathi

Romance

4  

Megha Rathi

Romance

चाहत

चाहत

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मोगरा क्यों आज बहका, रातरानी क्यों जगी

क्यों सितारे गुनगुनाते,चुप निशा को है लगी

चाँदनी भी मुस्कुरा के, चाँद को देखा करे

रसभरी नजरें झुकी सी, लाज के हैं गुल भरे।


संदली महकी हवा ने, कान में कुछ कह दिया

धड़कनों ने मुस्कुरा के,नाम दिल पे लिख लिया

मैं समर्पण की नदी हूँ, तुम समुन्दर हो पिया

एक हो जाएँ सदा को, चाहता मेरा जिया।


बांसुरी मैं बन गई हूँ, तुम बनो मन मोहना

अब लबो पे तुम सजा लो, गीत रच दो सोहना

प्रेम की पावन कथा हूँ, राग हूँ जीवन भरा

तुम गगन हो साथिया तो, शस्य श्यामल मैं धरा।


आ गले मुझको लगा ले, मौन साधे कह रही

रात की सरगोशियाँ भी, कह रही हमसे यही

मिल गए हम अब न होना, दूर तुम मुझसे कभी

एक दूजे में समाकर, एक हो जाए अभी।


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