चाहत
चाहत
तुम को चाहकर हमने खुद को पाया है
तुम क्या जानोहमने क्या क्या पाया है।
हर दुआ में तुम्हे शामिल कर लिया करते है
हमसे हुए हर सजदे में तुम्हारा नाम आया है।
प्यार कि परिभाषा हम क्या जाने
हमे तो सिर्फ तुमसे रिश्ता निभाना आया है।
जिक्र हो जब तुम्हारा तब बिखरजाते हैं
मानो के कोई इतर कि शीशी से महेक आया है।
ये रुतबा तो देखो तुम्हारी नजरों का
तुम्हें देखकर हमारी आंखों को सुकून आया है।