चाहत
चाहत
अपने जीवन से बस इतना ही चाहती हूं मैं
की किसी भी हद तक तू मेरी परीक्षा ले ले
मेरे प्रभु, पर तुझ से मेरा विश्वास न उठने पाए।
मेरे हृदय स्थल में तेरे प्रेम की जो नदी बहती है
वो कभी सूखने न पाए , वो अविरल बहती रहे।
खुद को भी खोया है तुझे पाने मैं मैंने
ये तुझ से बेहतर और कौन समझ सकता है।
मेरी सांसें तेरे नाम का जाप करती रहें।
और अपने जीवन के अंतिम क्षण तक
तेरे प्रेम में सराबोर रहूं मैं।"
ये दुनिया छलावा मात्र है, मिथ्या है,
भ्रम है तू मुझे इससे उबार लेना ।
जब भी मैं तुझे पुकारूं तू मेरा हाथ थाम लेना।"
गीतांजलि पढ़ते हुए जो विचार आते।