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Bhavna Thaker

Romance

5.0  

Bhavna Thaker

Romance

चाहत की धूप

चाहत की धूप

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क़सीदा कसूँ किस जुबाँ से

तुमने धूप मली कुछ सुनहरी

मेरे सपनों की डली पर

चाहत के उजालों की


जाग उठे मेरे सपने सारे

अलसायी सुबह में

जैसे कोई रशिम गुलाबी..!


सुस्त कदमों से नज़दीक गई

उठाया हथेलियों पर मुस्कुराते

खिल उठे सपने मेरे

मैं देख उसे मुस्काई


तेरे कँधे पर बल ना पड़े

लो जुल्फ़े समेट ली मैंने

महसूसों एक चुंबन धर लिया

मैंने तुम्हारे गालों पर..!


तुमने कहा मेरी पगार बढ़ा दो

ये तो किश्त हुई

जनाब पगार क्या चीज़

लो तुम्हें रख लिया काम पर


सँवारते रहो हमें जितना जी चाहे

ज़रा पलकों के पर्दे गिराओ तो सही

हम अपना वजूद रख दें

तुम्हारे कदमों पर..!


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