चाहत बंद है ग़म से
चाहत बंद है ग़म से


चाहत बंद है ग़म से,
नज़र कह रही है हम से
पलकों पर आबे-ए -चशम है
अंजुल में भरी हवा कह रही हम से।
चाहत बंद है ग़म से,
हर शाम कह रही हम से
परछाइयाँ गहरी हो रही है
मेरी परछाईं कह रही हम से।
चाहत बंद है ग़म से,
ना आओगे अब मिलने हम से
इंतज़ार बेकरार सा रहता है हर
पल बेकरारी कह रही है हम से।