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Pratibha Garg

Romance

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Pratibha Garg

Romance

चाहत -१

चाहत -१

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तेरी चाहत के धागे अब, 

प्रीत चुनर बुन जाते हैं।

पतझड़ के मौसम को मानो, 

फिर से हरा बनाते हैं।


तेरे आने की आहट से, 

खुले भाग्य के ताले हैं।

तेरे साथ जो लम्हा बीता, 

बने नसीबों वाले हैं।

मायूसी की शुष्क धरा पर, 

प्रेम-सुधा बरसाते हैं।

तेरी चाहत के....


हरदम अब तो सपनों में भी, 

तेरी राह निहारूँ मैं।

राह- प्रीत शुभ-पुष्प बिछाए, 

पथ को सदा बुहारूँ मैं।

चाहत की इस क्यारी में अब, 

हरसिंगार खिलाते हैं।

तेरी चाहत के...


धवल -चाँदनी सी, तुम आकर, 

रोशन हिय महका जाना।

द्रवित रिक्त सम अंतर्मन को, 

नेह-सुधा भरने आना।

चाहत की सतरंगी दुनिया, 

मिलकर सजन सजाते हैं।

तेरी चाहत के...



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