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Mamta Karan

Tragedy

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Mamta Karan

Tragedy

बूढ़ी माँ

बूढ़ी माँ

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न जाने घरों की वो रौनक अब

कहाँ खो गई,

अब हर घर में एक बेबस और

लाचार बूढ़ी माँ हीं रह गई।


जब आते हैं आगन्तुक द्वार पर

देर तक खटखटाना पड़ता है,

बहुत इंतजार के बाद ही दरवाजा

खुल पाता है।


प्रवेश जब अन्दर करते हैं, घर को

सुनसान पाते हैं,

जब पूछते हैं माँ से सब कहाँ हैं,

उनकी आँखों में आँसू ही पाते हैं।


कहतीं हैं बच्चे अब बड़े बहुतततत... बड़े हो गए हैं,

बड़ा औफिस, बड़ा घर, बड़ा शहर मिल गया है उन्हें,

अब बूढ़ी माँ, छोटा घर, छोटा गाँव कहाँ चाहिए उनको।


माफ़ करना जी बिस्तर से

उठने

मे देर हो गई,

इसीलिए दरवाजा खोलने में थोड़ी

देर हो गई ।


वहाँ से आकर रात भर नहीं सो पाए थे हम ,

सताने लगी भविष्य कि चीन्ता ,

क्योंकि बच्चे मेरे भी बड़े हो रहे

थे अब।


सोचने लगी कहाँ गई वो बातें घरों की,

जहाँ सब एक साथ मिलकर रहते थे,

बड़ा दलान ,आँगन , घर खाली कभी न पाते थे।


जहाँ सुनते थे कहानी बच्चे दादा दादी से ,

गूंजता था घर बच्चों के

किलकारी से।


है हाथ जोड़कर विनती सभी

परदेशी से,

दें अपने बुजुर्ग और घर को समय

गर्मजोशी से।


 


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