बूढ़ी गाईया
बूढ़ी गाईया
वो चार टांगो पर खड़ी थी
एक नए रास्ते पर
अनजाने चेहरों को देख रही थी
एक पेड़ से बंधी थी
कल मालिक ने उसे यहां बांधा था
रात से कुछ खाया भी नहीं था
अब तो पेट चिल्ला- चिल्ला के अकड़ चुका था।
शाम से मम्म्म्…...मम्म्म्…..
कर गला सूख चुका था।
पेड़ से मालिक की विश्वास की रस्सी से
बंधी थी।
मालिक आएंगे!
मालिक आएंगे!
मालिक आएंगे!
इस इंतजार में आज भी वो
बूढ़ी गाईया खड़ी थी।